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आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4177
आईएसबीएन :00000

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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाये

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परम्परा प्रचलन


जन्मदिवसोत्सव की तरह विवाह दिवसोत्सव मनाने की परम्परा भी हमें प्रचलित करनी चाहिए। यदियह प्रचलन हो सका तो लोगों को अपने वैवाहिक उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को निवाहने की प्रेरणा का हर वर्ष एक भावनात्मक अवसर मिलता रहेगा। उपस्थितइष्ट-मित्रों के सामने जो हर वर्ष उन पुण्य प्रतिज्ञाओं को दुहराते है यदि वे उन्हें तोड़ेगे तो लोग-हँसाई होगी। इस लोक-लाज से भी उन्हें अपने कोसंभाले रहना पड़ेगा। अपने भीतर जो हलचल इस धर्मानुष्ठान के द्वारा उत्पन्न होगी उससे भी लोगों को अपने रवैयों को सुधारने सम्भालने की कम प्रेरणा नमिलेगी। फिर उस उत्सव में जो लोग उपस्थित हैं, उन्हें भी तो यह सब देखने-सुनने को अवसर मिलेगा. जिससे उनमें भी आत्म-निरीक्षण करने और अपनेको सुधारने की भावना उठेगी। विवाह दिवसोत्सवों का यदि प्रचलन हो सके तो उससे दाम्पत्य कर्तव्यों के पालन में आशातीत प्रगति होगी और फलस्वरूप नयेसमाज का निर्माण सरल हो जायगा।

बदूकों के लाइसेन्स हर साल बदलने पड़ते है मोटरों के लाइसेन्स का भी हर सालनवीनीकरण कराना पड़ता है। 'युग निर्माण पत्रिका का हर साल रजिस्टर नम्बर नया कराना पड़ता है। अखवारी कागज का परमिट प्राप्त करने के लिए हमें हरवर्ष अर्जी देनी पड़ती है। विवाह के कर्तव्यों को ठीक तरह पालने का लेखा-जोखा उपस्थित करने, भूल-चूक को सुधारने और अगले वर्ष अधिक सावधानीबरतने को विवाह-लाइसेन्स का यदि हर वर्ष नवीनीकरण कराया जाय तो इसमें कुछ हानि नहीं हर दृष्टि से लाभ ही लाभ है। संसार के अन्य देशों में यह उत्सवसर्वत्र मनाये जाते है। अन्तर इतना ही है कि वे केवल खुशी बढ़ाने के मनोरंजन तक ही उसे सीमित रखते है, हमें उसे धर्म-कर्तव्यों की प्रेरणा सेओत-प्रोत करने वाले धर्मानुष्ठानों की तरह नियोजित करना है।

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    अनुक्रम

  1. विवाह प्रगति में सहायक
  2. नये समाज का नया निर्माण
  3. विकृतियों का समाधान
  4. क्षोभ को उल्लास में बदलें
  5. विवाह संस्कार की महत्ता
  6. मंगल पर्व की जयन्ती
  7. परम्परा प्रचलन
  8. संकोच अनावश्यक
  9. संगठित प्रयास की आवश्यकता
  10. पाँच विशेष कृत्य
  11. ग्रन्थि बन्धन
  12. पाणिग्रहण
  13. सप्तपदी
  14. सुमंगली
  15. व्रत धारण की आवश्यकता
  16. यह तथ्य ध्यान में रखें
  17. नया उल्लास, नया आरम्भ

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